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Ram Binod Kumar 'Sanatan Bharat'

Tragedy

4  

Ram Binod Kumar 'Sanatan Bharat'

Tragedy

आधा जानवर

आधा जानवर

2 mins
336


प्रतिलिपि की टाइटल 'आधा जानवर',

वैसे तो हमें लिखनी चाहिए।

इस पर कोई हॉरर कहानी,

पर रोज की झूठी कल्पना,

यह तो मुझसे अब होती नहीं,

आइए हम करते हैं जानवर पर चर्चा,

कहते हैं " Man is a social animal."

मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है।

जानवर सभी बुरे नहीं, आधे हो या पूरे,

इंसान भी है ,तो एनिमल्स हीं,

पशु - जानवर मतलब Livestock

' Live' means जीवंत, जीवन वाला।

' Stock' means भंडार ,खजाना ।

फिर जीवन-भंडार को कैसे हम बुरा कहें,

सभी प्राणी है ,हमारे लिए उपयोगी,

ईश्वर की सृष्टि में कोई दोष नहीं है।

जैसा अन्न वैसा मन,

जैसी पानी वैसी वाणी।

बस केवल खान-पान से ही,

सभी प्राणियों का ।

आचार - विचार और व्यवहार,

सब कुछ बदल जाता है,

कोई बन जाता है क्रूर,

फिर मार कर ही खाता है।

कोई घास-भूंसा खाकर भी,

हमें बस अमृत पिलाते हैं।

इसी तरह समझे ,छोटी सी बात,

अगर आपको बनना है देवता,

तो फिर भोजन करें देव भोग्य।

अगर कोई क्रूर-खूंखार बनना है,

फिर तो बदल लें आप खानपान।

अन्यथा फिर बनने पर राक्षस,

यह फिर मत आप पूछिएगा।

मैं ऐसा राक्षस कैसे बन गया ?

बस क्रूरता की सही परिभाषा,

बनाए हमारी अपनी खानपान।

ईश्वर ने बनाया दुनिया में कोई ,

जानवर नहीं, नहीं कोई इंसान।

हम सब अपने कर्म से ही बनते हैं,

देवता- इंसान , जानवर या शैतान।

तीन चरण हैं ,हम सब समझे,

देवता - मनुष्य और तीसरा शैतान।

मनुष्य एक भटका हुआ देवता है,

अपने को पहचाननें, न बने शैतान।

चेतना को विकसित करना सीखें,

न देखें पीछे ,बचें दलदल से,

शैतान नहीं, देवता बनें इंसान।

बुरे हैं तो, अच्छे की परिभाषा है,

अगर बुराई नहीं हो तो,

अच्छाई का पैमाना क्या होगा ?

रातें हैं तो है, दिन का महत्व,

दिन है तो रहता है रातों का इंतजार।

दु:ख का स्वाद है ,तो अच्छे लगते हैं सुख,

अगर सुख है तो निश्चय ही मिलेगी दु:ख।

पल-पल बदलती हमारी भी सोच है,

क्योंकि प्रकृति ही तो परिवर्तनशील है।

खूब बारिश भी हो तो हम, उब जाते हैं,

धूप निकले कड़क, शिकायत फरमाते हैं।

कोई मांगता है पानी ,कोई मांगता है धूप,

कोई शक्ल जिसे ,कई देखना भी ना चाहे,

कईयों को ,उसके बिना चैन नहीं आती है।

चीजें जो हमारे लिए, होती है महत्वहीन,

किसी के लिए, वह अनमोल ही होता है।

एक के पसंद से दूसरे करते हैं नफरत,

एक की अच्छी-अच्छी बातें ,

दूसरे को अच्छी नहीं लगती।

सब अपने धुन में ही जीते हैं,

न कोई सोचता -विचारता है।

बस अंधी दौड़ में देखा - देखी ,

सब एकदूसरे की नकल करते हुए,

बस किसी के पीछे,भागे जा रहे हैं।

पूरी करता हूं मैं अपनी कविता,

कई प्रश्न आपके लिए छोड़ जाता हूं।

कौन है जानवर ? कौन इंसान?

कौन आधा ? कौन पूरा?

आप पर भी कुछ विचारें ,

जीवन है आपका ! खुद भी संवारे ।



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