बरसो न ...
बरसो न ...
ओ बादल बरसो न !
तुम बूंद बूंद को तरसा न ।
सुख गई नदियां सारी,
आहर- पोखर का नाम नहीं,
धान के बीज का हुआ सुखाड़ा,
दादाजी के पास कोई काम नहीं।
दादी अम्मा से लगाए,
देखे तुझे दिन -रात,
अगर न धान रोपा जाएगा,
कैसे खाएंगे भात ?
पर अब तो हद हो गई,
मेरे सब्र की बांध टूट गई,
रस्ता ही आगे निकल गया,
मंजिल पीछे छूट गई ।
बरसो या मत बरसो,
अब हम तेरा नाम नहीं लेंगे,
चंद्रमा से चावल आएगा,
बाबूजी जो काम करेंगे।
अगर मिटे ना प्यास जो तेरी,
मेरे घर से पानी ले जाओ,
दादी अम्मा बाल्टी भर देगी,
जितना चाहे पी जाओ।