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Dr Mohsin Khan

Others

4.5  

Dr Mohsin Khan

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अपनी राह

अपनी राह

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जब मैं अपनी राह पे चलने लगा।

वो घबरा के रास्ते बदलने लगा।


बड़ी फ़िक्र से लौट आई चिड़िया,

दिन जब धीरे-धीरे ढलने लगा।


छुट्टियाँ बिता के हुआ रुख़सत,

तो माँ का दिल पिघलने लगा।


सूने मज़ार से दी किसी ने दुआ,

चराग़ मेरे घर का जलने लगा।


मुद्दत से एक ज़िल्लत छुपाए हूँ,

मैं अपने आपको निगलने लगा।


गुज़रने लगा दुश्मनों की गली से,

हर ख़ंजर हम पे निकलने लगा।


ख़ुदगर्ज़ों ने यूँ किया तबाह 'तनहा',

जैसे लोहा समंदर में गलने लगा।


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