STORYMIRROR

Jatin Pratap Singh

Others

4  

Jatin Pratap Singh

Others

अब नहीं जानता

अब नहीं जानता

1 min
319

देखकर उसे नही चली हवाएं,

न उड़ी जुल्फें न छाई घटाएं।


उसको देखते ही नही हुआ सब कुछ,

बहुत समय लगा समझा बहुत कुछ।


बीता समय कुछ परिचय हुआ,

नाम ही था, क्या संशय हुआ।


घड़ियों को चलना था चलती रहीं,

न जाने क्यों यादें ढलती रहीं।


मेरा नादान मस्तिष्क बड़ा अनजान था,

फूल कैसे खिले अब तक तो शमशान था।


अब तक ये जाना नही था कि क्या है,

बोला नही कुछ झिझक है कि हया है?


मुंह तो चुप था जनाब हरकतें बोली,

सख्ती तो अब भी चुप थी बरकतें बोली।


क्या करता मैं पहला इश्क था हमारा,

हमे समझाना तो फर्ज़ था तुम्हारा।


तब से अब तक मांगा था उसको,

सब से रब तक मांगा था उसको।


शक्ल या किस्मत ख़राब है अपनी,

क्या करें जनाब आखिर है तो अपनी।


सात्विक हैं सो यादें ही पिया करते हैं,

अब वक्त है इन पन्नों को इतिहास किया करते हैं।


सोचा था आगे बढ़ेंगे, बढ़ते चलेंगे,

अगर वो चाहेगा तो फिर से मिलेंगे।


अब भी बतलाता हूं मन नही मानता,

कैसे कहूं तुम्हें अब नही जानता।


चलो छोड़ो ये बातें मान भी जाओ,

बहुत दूर हो हमसे अब तो मत सताओ।

         

               



Rate this content
Log in