उनकी मर्ज़ी
उनकी मर्ज़ी
कबूतर तो आते नहीं हम खिड़कियां ताकते रहते हैं,
गली में आना न आना उनकी अपनी मर्ज़ी है,
हमारा काम है हम झांकते रहते हैं।
उनको बताने को कि गली में हम हैं,
भागना घंटी बजाकर क्या कम है।
देख लेते हैं मगर खुद को नहीं दिखाते,
अपने सा संयम हमको नहीं सिखाते।
उसकी आंखे न जाने झील हैं कि सागर हैं,
राज़ बाकी हैं उनमें कई करने उजागर हैं।
रातों में नींद आती नही हम बस जागते रहते हैं,
ख्वाबों में आना न आना उनकी अपनी मर्जी है,
हमारा काम है हम मांगते रहते हैं।

