ज़िन्दगी
ज़िन्दगी
एक सपने का टुकड़ा जोड़कर,
मैंने जिन्दगी से इश्क किया था।
चांद सूरज होठों मै दबाके
इश्क को बयां किया था ।
कोई सबब ऐसा दो या रब
वजह बेगानगी नहीं मालूम था।
कहुँ तो क्या कहूं अब आज
हिज़्र के मारे, कहना मुश्किल था।
आंखों में बसर सारी जिंदगानी ,
जर्रे जर्रे में खुद को जोड़ रखा था।

