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Bijal Jagad

Abstract

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Bijal Jagad

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१५ अगस्त १९४७ शुक्रवार

१५ अगस्त १९४७ शुक्रवार

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१५ अगस्त मेरे अस्तित्व का दिन है ,

खुद को जान के, गुलामी से आजादी पाई।


इस नासमझ की सरहद को पार कर ,

खुद को खुद से मिलने इतने पास चली आई ।


खुद ,खुद से खुद को एक खत लिखा था

आज वो इंतजार की घड़ियां खूब रंग लाई ।


अब मै रंगो मै रंगी हूं, देश प्रेम का रंग भी जोड़ दिया,

१५ अगस्त शुक्रवार को जैसे दीवाली हो मनाई।


कैसा महसूस होता , खुद के देश में परदेसी रहना,

अब उधार नहीं जिया जा सकता

रास्ते कठिन, मौन जंग ; पर कदम दीलेर, मजबूत और तेज ।


ये आजादी कि हवा तसव्वुर की खिड़की , अतीत का धुंआ मिट्टी तक पहुंचा , 

और में नंगे पैर दौड़े जा रही, आजादी को गले गले लगा रही ।


आजादी को गले गले लगा रही ।

आजादी को गले गले लगा रही ।



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