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नमिता गुप्ता 'मनसी'

Romance

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नमिता गुप्ता 'मनसी'

Romance

कहीं न कहीं.. कभी न कभी

कहीं न कहीं.. कभी न कभी

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इंद्रधनुषी सपनों की दुनिया से

सदैव वंचित रही मैं,

जो भी थे....जैसे भी थे

धुंधले से....फीके रंगों वाले

घुलते गये

एक-एक कर

समय की गर्त में,

मैंने

उनकी अनुपस्थिति में

तुम्हारे शब्दों को चुना !!


माना, खो ही जाएंगे हम-तुम किसी दिन -

जैसे....कुछ सवाल

उत्तर की प्रतीक्षा में अंत तक,

जैसे....एक तारा

ढूंढते हुए एक और तारे को

आकाश गंगा में,

जैसे....कुछ शब्द विचरते हैं

पूर्णता की तलाश में

कविता के पूर्ण-विराम तक

और रह ही जाती है

कविता

फिर भी अधूरी सी,

.. फिर भी

तलाश ही लेंगे

एक-दूसरे को

कहीं न कहीं.. कभी न कभी !!



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