सुन रहे हो न..
सुन रहे हो न..
एक रोज़
आसमान की छत पर
बादलों के छज्जे पर खड़ी हुई मैं ,
उछाल दूंगी अपनी तमाम कविताएं
पतंगें बनाकर
सारे इंद्रधनूषों के पार !!
सुनो
डोर तुम्हें ही थामनी होगी तब ,
ध्यान रखना इनका ,
"उड़ानों" की भीड़ में
कहीं रास्तों की ही होकर न रह जाएं ये !!
सुन रहे हो न ध्यान से !!