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नमिता गुप्ता 'मनसी'

Abstract Fantasy

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नमिता गुप्ता 'मनसी'

Abstract Fantasy

सुन रहे हो न..

सुन रहे हो न..

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एक रोज़

आसमान की छत पर

बादलों के छज्जे पर खड़ी हुई मैं ,

उछाल दूंगी अपनी तमाम कविताएं

पतंगें बनाकर

सारे इंद्रधनूषों के पार !!


सुनो

डोर तुम्हें ही थामनी होगी तब ,

ध्यान रखना इनका ,

"उड़ानों" की भीड़ में

कहीं रास्तों की ही होकर न रह जाएं ये !!


सुन रहे हो न ध्यान से !!



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