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नमिता गुप्ता 'मनसी'

Fantasy Others

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नमिता गुप्ता 'मनसी'

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"मनसी".. बिल्कुल मन के जैसी !!

"मनसी".. बिल्कुल मन के जैसी !!

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नहीं हूं मैं तुम्हारी लेखन की तरह

और न ही सोचती हूं वैसा

जैसा कि

सोच जाते हो तुम

"लिखते" हुए !!


बहुत ही साधारण सी हूं मैं..

नहीं होते वाक्यांश मेरे

अमृता प्रीतम के जैसे ,

और न दर्द सरीखा

"नीर भरी दुख की बदली" के जैसा !!


तुम्हारा एक-एक हर्फ

सजा हुआ करीने से

सीधे.. दस्तक देता है मन पर ,

मेरी कविता साधारण सी

उलझी-सुलझी अपने में ही,

माना, करतीं हैं सवाल..

कभी रूठें..

कभी रोयें..कभी सुबकें..

कभी करें शिकायतें..

साधारण सी लड़की के जैसे !!


सुनो..

नहीं समझतीं वो जज़्बात किताबी-प्रेम के,

मनाओ..तो मानें भी..एक बच्ची के जैसे

बस, भावुक हैं जरा

क्योंकि, ये हैं "मनसी".. बिल्कुल मन के जैसी !!



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