मोहब्बत हम तेरे क़ाबिल न हुए
मोहब्बत हम तेरे क़ाबिल न हुए
मोहब्बत हम तेरे क़ाबिल न हुए
गुमसुम थे तुम, होंठ भी सिले थे,
थी शायद ख़लिश दिल में कोई,
जो पल के लिए आज़माइश न हुए,
मोहब्बत हम तेरे क़ाबिल न हुए...
ज़र्रे-ज़र्रे ने याद दिलाई तुम्हारी,
लम्हों ने भी वफादारी निभाई,
दोस्तों के महफिल में हम शामिल न हुए,
मोहब्बत हम तेरे क़ाबिल न हुए...
रक़ीब जो था मेरा इस कायनात में,
आज उसी नें जफ़ा निभाई है,
ज़िंदगी में उसके तालीम न हुए,
मोहब्बत हम तेरे क़ाबिल न हुए...
रूठे थे तुम और खफ़ा भी थे,
पर मुझे इसकी खबर न थी,
तेरे इन वसूलों से आलिम न हुए,
मोहब्बत हम तेरे क़ाबिल न हुए...
उन्हें पता नहीं मेरे चाहत के बारे में,
उन्हें हम दिल से कितना चाहतें है,
पर इस बात से वो आजिम न हुए,
मोहब्बत हम तेरे क़ाबिल न हुए...