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Ravindra Shrivastava Deepak

Tragedy

4  

Ravindra Shrivastava Deepak

Tragedy

कोरोना...एक अदृश्य शत्रु

कोरोना...एक अदृश्य शत्रु

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ज़िन्दगी रो उठी, लाशों को देखकर,

बुझते चराग़ों को शामों में देखकर,

क़ातिल यूं ही नही बाहर की हवा अब,

आग़ोश में अपनें लेती ज़इफ़ देखकर...


ये जुस्तजू अब मौत से ज़िन्दगी की है,

दो पल और जी लें, ये ख्वाईश की है,

सांसो के डोर न जानें कब टूट जाए,

जीस्त को और जी ले ये गुजारिश की है...


ये कुदरत का कहर भी अजीब है,

मानों लगता है मौत हरपल करीब है,

कभी पानी के लाइनों में घंटो लगते थे,

आज पल की ऑक्सीजन ही नसीब है...


चीखती-चिल्लाती, रोने की आवाजें,

कौन सुनेगा उनकी दिल की फ़रियादें,

सबने किसी न किसी अपनें को खोया है,

अफ़सुर्दा है दिल, क्या है खुदा के इरादे...


लाशों को अपनें ही नही पहचान रहे,

आंखें नम और दिल में इज़्तिराब रहे,

मुश्किल में है अब सब ज़िंदगियाँ यहाँ,

भला कैसे अब होठों पर मुस्कान रहे...


अदृश्य दुश्मन नें हमपर कहर ढाया है,

मानवता पर विनाश का बादल छाया है,

खुद को खुद में कैदी बनाना ही होगा,

इस द्वंद में सबको साथ निभाना होगा...


*ज़इफ़-दुर्बल *जीस्त- जीवन

*अफ़सुर्दा-दुःखी *इज़्तिराब-बेचैनी 


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