धोखा (गजल)
धोखा (गजल)
बार, बार धोखा खाने से विश्वास टूट जाता है,
यकीन नहीं रहता, दिल टूट जाता है।
दिल साफ से ही बनता है रिश्ता गहरा,
मतलब का रिश्ता अक्सर टूट जाता है।
एक ही दिन में किसी को कोई जांच नहीं सकता,
कई बार चमकते चमकते सितारा टूट जाता है।
गरजते हैं जब बादल बरसात
बन के, नदी का किनारा अक्सर टूट जाता है।
तन्हाई की लम्बी रात हो चाहे जितनी,
हकीकत सामने आते ही सपना टूट जाता है।
इंतजार करते करते भी न मिल पाए सज्जन जो, कसमों
से किया वादा भी टूट जाता है।
झूठा, फरेबी कितना भी दिलवाए भरोसा , सुदर्शन
आखिर साथ उससे छूट जाता है।
