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Ravindra Shrivastava Deepak

Abstract Classics

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Ravindra Shrivastava Deepak

Abstract Classics

मां की ममता

मां की ममता

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जो लिखी न जा सके,

उसे लिखने की कोशिश कर रहा हूँ,

वो माँ ही है जिसके आशीर्वाद से,

ये खुशहाल जिंदगी जी रहा हूँ,

है इतना साहस नहीं की,


ब्रह्मांड को कागज पर उकेर दूं,

कलम उठाऊं और,

ममता को चंद पन्नों पर बिखेर दूं,

मां ही मंदिर, मां ही ईश्वर, मां ही पूजा,

मां ही आशीर्वाद, मां ही प्रार्थना,


वो एक मां ही थी जिसने,

त्रिदेव को दूध पिलाया था,

मां ने सबके त्रास को मिटाया था,

मां के बखान में शब्द भी कम पड़ जाए,

गर प्रयोग में आये तो फिर तर जाए,

धरती भी तो एक मां ही है,


हम क्या देते है उसको,

उससे ज्यादा हमें वो देती है,

सीना चीर बीज डालते,

बदले में हमें भरपूर देती है,

चाहे हमने कष्ट दिए हो,


उसे उसका कोई रोष नहीं,

मानव खुशहाल और भूखा न रहे,

इसमें स्वयं के कष्ट का होश नहीं,

जैसी है धरती माता जो,

कष्ट भी बच्चों के लिए सह लेती है,

उफ़्फ़ न करती कभी भी,

पर ज्यादा से ज्यादा देती है,


ऐसी होती है मां और उसकी ममता,

मानव वो धनवान है जिसकी,

मां का हाथ उसके सर पर होता,

जीवन उसका उज्ज्वल बनता,

जीवन में वो कभी दुःखित न होता,


है "दीपक" की यही प्रार्थना,

जीवन मां के चरणों में समर्पित हो,

कभी न टूटे डोर मातृप्रेम का,

ईश्वर चाहे तो ऐसा निश्चित हो।


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