उम्र की कश्ती
उम्र की कश्ती
जी ले जो ढंग से तो ज़िंदगी एक जश्न है
हर शै इसकी गुब्बार भरी
बचपन ज़िद्दी परिंदा
ना भूत का रखता याद कुछ
ना करता चिंता भविष्य की,
जवानी की दहलीज़ सयानी इत दौड़े उत भागे..!
पर ज़िंदगी की सच्चाई करेले सी कड़वी
आँखें चुरा ले चाहे कपड़े से पोंछ ले
इधर से देखे या उधर से
आईने के सो टुकड़े भी कर ले,
दिखायेगा वो ही जो हकिकत है..!
जवानी का आवेग थम जाने पर
बूढ़ापे की झुर्रिया ही तो नज़र आयेगी
यकीनन दो साए मुकम्मल होते हैं
मन के केनवास पर
एक सुंदर मनमोहक जिसे मन देखना चाहता है
उम्र भर जवाँ-जवाँ हसीन-हसीन..!
दूसरा अनचाहा आँखों की पुतलीयों में चुभता सा
पर आईना कहाँ झूठ बोलता है
चाहे रिश्वत ही दे दे
चाहे नाखूनों से नोच ले
पत्थर से तोड़ दो कर दो सौ टुकड़े
हर टुकड़ों में उभर आता है
ज़िन्दगी का सबसे बड़ा सच
उम्र की खिड़कियों से झाँकता
अनचाहा सच..!
जो घड़ी की सुई पर नाचते कहता है
रेशम सा मखमली तन
खुरदुरा होकर मिट्टी में मिल जाएगा,
जो आया है यकीनन जाएगा ही जाएगा
जी लो ज़िंदगी जश्न है,
बहती हुई धीरे-धीरे मौत की साहिल पे
उम्र की कश्ती है।