सर्वनाश...एक चेतावनी
सर्वनाश...एक चेतावनी
मौत का प्रलयंकारी तांडव कैसा,
काल नें विशाल मुख को खोला है,
विध्वंश हो रहा है प्रत्येक जीवन,
मृत्यु नें जीवन पर धावा बोला है...
सर्वनाश ही दिख रहा हर पल,
नियति ही जानें क्या होगा कल,
त्राहि-त्राहि मची है संसार में,
चिंतित हूँ जानें कैसा होगा कल...
ये घोर विपदा आन पड़ी है,
मृत्यु सीना तान खड़ी है,
हे ईश्वर! अब तो हस्तक्षेप करो,
इस प्रलय का तुम आखेट करो...
जो रहा न मानव जाति तो फिर,
कौन तुम्हें अनंतकाल तक पूजेगा,
जो उन्हें मिलती है मृत्यु यहां,
समस्त मानव जाति तुमसे रूठेगा...
अब तो मानव से यूं न परिहास करो,
इस घोर विपदा को यही समाप्त करो,
देर न हो जाये कहीं तुमसे हे भगवन,
अपने बनाये जगत का उत्थान करो...
अनगिनत लाशों के ढेर पर बैठे हो,
क्या तुम्हें बिल्कुल ये न सूझ रहा,
ये कैसी तुम्हारी नियति है कि,
परिस्थितियों को भी न बुझ रहा...
शीघ्र कुछ करो की सम्मान हो जाये,
मानव हृदय में आपका नाम हो जाये,
विकराल स्थिति को शीघ्र ठीक करो,
वरना, कहीं सब्र टूटा तो अपमान न हो जाये...