अधूरी मोहब्बत...
अधूरी मोहब्बत...
जो लौट के न आ सके, वो अपना कहां था,
ये तो बस भूल हो गई उसे अपना कहा था,
मुक़द्दर में थे नही शायद वो कभी भी मेरे,
जुदाई में उनके आंसू कतरा-कतरा बहा था...
शाखों से पत्ते टूटे, टूटे दिल के अरमान सभी,
हालातों की दुश्वारियां उन्होंने सोचा न कभी,
मशक्कत तो किया लम्हों नें बताने तो उनको,
मगर उन लम्हों से उन्होंने मुँह मोड़ लिया तभी...
मुसाफ़िर थे कभी हम जिसकी मंजिल तुम थे,
दिल की धड़कन और सांसों का कतरा हम थे,
ऐसा क्या हुआ जो इस क़दर दर्द मिला हमें,
वैसे भी बेरुखी से ग़म, पहले से क्या कम थे...
वो अनजान थे और शायद अनजान ही रहेंगे,
ख़ता हो गई उनसे, जुदाई में बस यही कहेंगे,
मुसल्सल लम्हों की फितरत तो बीतने की है,
समय रहते इश्क़ समझ न पाए ये ग़म सहेंगे...