ऐ हुस्न, तेरे नख़रे हज़ार...
ऐ हुस्न, तेरे नख़रे हज़ार...
ऐ हुस्न, तेरे नख़रे हज़ार,
जाने कितनो के नियत देती बिगाड़...
अंगड़ाई लेती हो जब, ये दिल मचलता है,
एक तकनी से तेरे, दिल ये संभलता है,
गेसुओं की गिरफ़्त में ये जो उंगलियां हैं,
देख इन्हें दिल भी जगह से फिसलता है...
ऐ हुस्न, तेरे नख़रे हज़ार,
जाने कितनो के नियत देती बिगाड़...
ये सुर्ख़ होठ जो दांतो तले दबाती हो,
मुस्कुरा कर फिर जो पास आ जाती हो,
होंठ से नही सिर्फ़ आंखों से बात होती है,
दूर जा कर इस दिल को बड़ा सताती हो...
ऐ हुस्न, तेरे नख़रे हज़ार,
जाने कितनो के नियत देती बिगाड़...
ये शरबती आँखे जो तुम्हारी है,
जो देखे ले, बिन पिए ही वो शराबी है,
क्या खूब झील सी आँखों से ख़ुदा ने बख्शा है,
गर बन जाये शराबी हम, ये ख़ता हमारी है...
ऐ हुस्न, तेरे नख़रे हज़ार,
जाने कितनो के नियत देती बिगाड़...
बदन तेरा जैसे संगमरमर की मूरत हो,
कुदरत का बनाया एक नायाब सूरत हो,
तुझे पाने की कोशिश भला कोई कैसे करे,
जानती है दुनिया, "दीपक" की तुम ही पूरक हो...
ऐ हुस्न, तेरे नख़रे हज़ार,
जाने कितनो के नियत देती बिगाड़।