बचपन के वो दिन
बचपन के वो दिन
जीवन के इस पड़ाव में जब बचपन के दिन याद आते हैं,
चेहरे पे मुस्कान और आँखों में खुशी के आँसू भर जाते हैं !
सुबह पापा के साथ सैर को जाते थे,
वहीं दातुन करते, ताज़ी हवा खाते थे !
कंचे, गुल्ली-डंडा और पिठु खेलते थे,
कभी कुश्ती करते, कभी दंड पेलते थे !
पाँच पैसे में पाँच संतरे की गोली आ जाती थी,
दस पैसे वाली खट्टी इमली भी बहुत भाती थी !
गर्मी में छत पर पानी छिड़का करते थे,
भाई बहनों से टॉफी, खिलौने के लिए लड़ते थे !
कोई टेन्शन नहीं थी, अपनी मर्ज़ी से पढ़ते थे,
फिर भी क्लास में फर्स्ट आया करते थे !
शुरू में टीवी पर जब कुछ भी नहीं आता था,
कभी कभी कृषि दर्शन भी मन बहला जाता था !
बान की रस्सी से चारपाई हम बुनते थे,
दादी और नानी से कहानियाँ सुनते थे !
अपनी लंबाई को हाथों से मिन्ते थे,
छत पर जब सोते थे, तारों को गिनते थे !
दूध मलाई, मम्मी पापा खूब हमें खिलाते थे,
चुपके से कभी उसकी आइस्क्रीम जमाते थे !
जिस दिन किसी बात को लेकर हम रोते थे,
मम्मी के मनाने के बाद ही हम सोते थे !
देखने में पतले थे, पर कभी नहीं थकते थे,
पूरा दिन खेल कूद, मस्ती कर सकते थे !
चाचा-चाची, ताया-ताई प्यार इतना करते थे,
उनका हर काम भाग भाग किया करते थे !
पापा की मार में प्यार छुपा होता था,
मम्मी की डाँट में दुलार छिपा होता था !
वो यादें अब भी दिमाग़ को सुकून दे जाती हैं,
बचपन, तेरी बहुत याद आती है !