लेखन की प्रक्रिया
लेखन की प्रक्रिया
जब मैंने जिंदगी में
लिखना शुरू किया पहली बार
दिल में आते हुए भावों को
अपनी कॉलेज की नोटबुक के
पिछले पन्नों पर ही लिख देती थी।
विषय अक्सर होते थे
या तो कोई निबंध के कोट्स
या फिर प्रकृति से संबंधित
या फिर थोड़ा बहुत रूमानी पंक्तियां।
प्यार नहीं किसी से था
पर सिनेमा तो देखते ही थे
उम्र नादान थी,
किशोरावस्था के दिन थे।
एक दिन हमारी अम्मा ने हमारे
बैग की तलाशी ली
अरे भई उम्र जो नादान थी
पिछले पन्नों पर जब
उनकी नजर गई
समझिए हमारी तो शामत ही आ गई।
उनको लगा ये चिड़िया अब
गलत दिशा में उड़ेगी
पन्ने वो फाड़े गए, सख्त हिदायत दी गई
आगे से ये सब लिखोगी अब नहीं
पढ़ो और सिर्फ पढ़ाई में ही मन लगाओ
बहुत हो गई, तुम्हारी ये शायरी।
बस उस दिन के बाद,
छोड़ दिया सब
फिर लगभग 36 वर्षों बाद
डायरी में लिखा कुछ यूँ ही
बेटे ने देखा कुछ अचरज से
बोला माँ ये आपने लिखी
अरे आप लिखती भी हो,
हमें कभी पता चला ही नहीं
ऐसे ही लिखा करो ना,
किया उसने आग्रह
बस पिछले 8 वर्षों से ऐसे ही
अपनी भावनाओं को लिखती हूं
किसी को पसंद आए या ना आए
मुझ को तो ये पंक्तियां
अपनी जाई लगती है।
दिल की है भावनाएं
बहुत प्यारी लगती हैं।