अकेलापन और लॉक डाउन
अकेलापन और लॉक डाउन
तन्हाई मुझे हमेशा से भाती थी,
बच्चो से इसी बात पर मेरी बहस भी हो जाती थी !
वो कहते, "आप हर समय घर में क्यों बंद रहते हो,
कभी तो बाहर निकला करो !
पीलीभीत ,बरेली ,शाहजहांपुर की बड़ी पुरानी सरकारी कोठियों में,
जहां पीपल और बरगद के बड़े बड़े पेड़ चारों ओर थे !
पतिदेव की नौकरी के दौरान, मै कई कई दिन अकेली रही !
नहीं मै कभी डरती नहीं थी !
तब माहौल सामान्य था ,
साधन और सुविधाओं पर बंदिश नहीं थी !!
तब के अकेलेपन और लॉक डाउन की तन्हाई में अंतर बहुत है !
इन दिनों साधन और सुविधाएं सीमित,
चारों ओर खौफ के हालात ,
खुद को यतन से समझाना पड़ता है....
हौसला रखो , सावधानी रखो और प्रार्थना करो.....
देखना ये दिन भी फुर्र से उड़ जाएंगे !!!!
