तुम अनसुईया का प्रतिरूप हो
तुम अनसुईया का प्रतिरूप हो
तुम सहनशील तुम सरल हृदया,
तुम अति पावन गंगाजल हो !
चिंतन गंभीर सुरभित समीर,
तुम शीतल मन व निर्मल हो !
विकसित यौवन हर्षित चितवन हो,
तुम सरस व सघन उपवन हो !
तुम मानिनी के हृदय में प्रेम प्रबल हो,
तुम परिवार का स्तम्भ और संबल हो !
विकसित
पल-पल होता है जीवन,
तुम निज गृह की वान्या वनिता हो !
तुम हो वीणा की एक मधुर तान,
तुम असुर हंता तुम सुर सरिता हो !
देवों के देव भी तुम्हारी गोद में खेलते,
तुम माता अनसुईया का प्रतिरुप हो !
मानव के सृष्टि की तुम जननी हो,
तुम ही माता, बहना, भार्या का रूप हो !