शोर
शोर
कितना कोतुहल है सड़कों पर
हर कोई प्रवृत्त है जीवा को लेकर
दिन रात उद्देश्य के चतुर्दिक में घिरे
अपने ही स्वस्थ को कर रहे अवज्ञा
कौन सहचर्य निभाएगा
कौन मिटाएगा आए हिस्से के परिताप
आपाधापी के इस चक्कर में
रिश्ते भी छोड़ रहे हैं साथ
सोच जरा ए बंवारे
तनिक लगाम तू लगा
तेरे संग है परमात्मा
कैसे ना होगा निर्वाह
परिश्रम तो तेरा तुझे करना होगा
मगर मत ज़िंदगी को कसौटी बना
रख प्रभु पर भरोसा
चीख चीखकर ना अनमोल पल
तू तर्क में गवां!