स्त्री हूं मैं
स्त्री हूं मैं
पंच तत्वों से निर्मित, प्रकाश पुंज से सुसज्जित
अविरल बहती नदिया सी सरल, सादगी से अलंकृत
हर सांचे में ढलकर, आकार दिलों के घड़ती
नव जीवन में सृजनहार, असंख्य कणों में विस्तृत
स्पंदन, प्रेम, स्नेह, वात्सल्य और अनुराग से परिपूर्ण
ज़िंदगी के सारे रंगों में, आस बनकर उभरती
खुले आसमां सी असीमित, गहरे सागर का सीप मोती
आशाओं के पंख लगाकर, अडिग चट्टानों सी विचरती
अद्भुत शक्ति का संचार लिए, हौंसले सभी में भरती
धैर्य, संतोष, परोपकार और सहजता का उद्यान सहेजे
मानवता के उत्थान में सहयोग आरोही के करती
जीवन की नईया में अभिमान की मल्लाह बनकर आती।