स्याही
स्याही
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जज़्बातों की स्याही से
उकेरा है मैनें श्वेत सफहों पर आज
कह रही जो धड़कने
अंतस में दे रही आवाज़
कोई तो समझे तम से लिपटे
ओंधे पड़े अनुवाद
खिलने को तो गुल
खिल ही जायेंगे बेशुमार
और सच जानो
उनकी खुश्बू से भरी स्याही
फिर ले आएगी होंठों पर
एक खुशनुमा एहसास
उन खामोश एहसासों को
तुम तक लाने को तह करना होगा
भीनी भीनी महक से सना और
सच में करना होगा
मन की चंद दहलीजों को पार
जो तुमसे कह सके इस दूरी में भी
इंद्रधनुषी रंगों में रंगी मेरी तमन्नाएं
और बन सके स्याही वो आधार !