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Harminder Kaur

Classics Fantasy

4.5  

Harminder Kaur

Classics Fantasy

स्मृतियाँ

स्मृतियाँ

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ना आँखों से ओझल

ना दिल से दूरस्थ

मीठी मीठी सी

हैं आज भी दूरस्त


रवि सी ज़र्द

चंदा सी श्वेत 

कुछ अर्धचंद्राकार 

कुछ चन्द्रबिन्दुकार


चूमती हैं लहरें बनकर

देख हृदय विशाल

सिमटी रेत कणों सी

आकर दृगौ के पास


ऊंघती मौका पाकर

छू लेती दिल के तार

किसी खज़ाने की दौलत सी

कभी नहीं होतीं दरकिनार


स्मृतियों के जुग

अक्सर रहते सदाबहार

कभी फुसफुसाती सी 

कभी झांकती बार-बार ! 


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