यादें
यादें
यादों की सिगड़ी में जलते
मेरे अंतर्मन के मानके
पवन के झोंको से मिलकर
धरे रूप अनोखे
धीरज की फिर इक इक लकड़ी
धधक धधक मुझसे झगड़ी
क्यों रखती हो ढककर मर्जी
आज़ाद करो जो रही सुलगती
आस प्यास में मत तुम तरसो
वरना लग जायेंगे बरसों
राख तुम्हें भी कर देंगे
अंतरद्वंद के उलझे मसले
चिंगारी बन जाओ खुद ही
छोड़ो अनसुलझी गुत्थी
सबके हाथ न आना लेकिन
किसी की उजाले से भर देना मुठ्ठी
मासूम मन को फिर समझाया
क्यों तपाती हो तुम काया
रखो हमेशा सच्ची आग
तपो फिर चाहे बार बार !