प्रेम
प्रेम
नैनों की पंखुड़ियां जब जब
प्रेम से भर जाती हैं
आत्म का मिलन आत्मा से होने लगता है
चिरायु हो जाती हैं सांसें और
अंतस रौशनी से भर जाता है
इक अजीब सी चमक और महक से
सराबोर हुआ सारा आलम लगता है
और कभी ना खत्म होने वाला नैसार्गिक
अंकुर बनकर हिज़्र की गहराइयों में पनपता है
कोमल, मखमली एहसासों की
रहगुजर से होता हुआ प्रेम
धड़कनों का संगीत सारी फिज़ा में
छिटकता नज़र आता है
और इंद्रधनुष के रंगों सा प्रतीत होता है
मासूम, मस्तमौला बेपनाह मुहब्बत के कसीदे भरता
आत्मीयता के सोपान चढ़ता है
ना कोई रंग होता है इसका
ना कोई जात
सबको अपना हमराज़ कहता है
प्रेम एहसास है, प्रेम यतन भी
प्रेम अगन है, प्रेम तपन भी
प्रेम राग है, प्रेम बैराग्या भी
प्रेम पूजा है, प्रेम आस्था भी
प्रेम भाव है, प्रेम लिखावट भी
प्रेम आदि है, प्रेम अंत भी !