इश्क़ के राज (ग़ज़ल)
इश्क़ के राज (ग़ज़ल)
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इश्क़ के राज निगाहें भी बताने से रही,
बेेेवफा के लिए आँँसू भी बहाने से रही।
दिन उदासी भरे लौटेंगे नही फिर भी क्यों,
जिंंदगी ख्वाब नये अब तो सजाने से रही।
तुुुम नही पास रहे बीत गई रातेंं भी,
दूूरियाँ भी मेरी आँखों को रुलाने से रही।
ये हवायेंं उसी खुुशबूू का हवाला देकर,
यूूँ किसी रोज हमें फिर से लुभाने से रही।
काश होता कि निगाहें न उलझती मिलकर,
तिश्नगी दीद की आँँखोंं से कभी जानेे से रही।