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Nirupama Mishra

Tragedy Others

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Nirupama Mishra

Tragedy Others

मुद्दत हो गईं देखे हुए

मुद्दत हो गईं देखे हुए

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भावना के फूल भी बिखरे हुए।

मुद्दत हो गई उसको  देखे  हुए।


चाहकर भी कभी दिल तो मिलते नही,

रंग ज़रदार के कितने  फीके हुए।


कुछ फरेबी लगे ये सियासी अदा,

बात उलझी हुई लफ़्ज़ झूठे हुए।


बैर दिल में लिए हैं लबों पर गिले,

आदमी आजकल कितने बदले हुए।


याद जिनको रहे अपना मतलब केवल,

लोग ऐसे यहाँ कब किसी के हुए।


ये दिलासा बहुत दिल की उम्मीद को,

सुब्ह  सूरज  उगे रात डूबे  हुए।



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