अश़्क बहाना भूल गए
अश़्क बहाना भूल गए
अब आँखों से अश़्क बहाना भूल गए।
तुम आये तो दर्द पुराना भूल गए।
अपने भीतर की हलचल से हैरानी,
महफिल में भी शोर मचाना भूल गए।
करते जो आबाद हमेशा गुलशन को,
पंछी अपना ठौर ठिकाना भूल गए।
खामोशी भी बोल रही अपने भीतर,
बाहर है कितना वीराना भूल गए।
यूं तो सबको रोज नसीहत देते हैं,
बस अपने को ही समझाना भूल गए।