शीर्षक-स्वप्न सुंदरी
शीर्षक-स्वप्न सुंदरी
तुम
कौन हो मौन ने पूछा
छलकती
लम्हो की तरह सी
अंगूठी में जडी हुई
नगीना सी
चेहरे पर नूर बिखेरते हुए कुछ इस
अंदाज मे हँसते है ।आप कि हँसी की
खनखनाहट से
चाँद की चमक भी फीकी सी
अंगड़ाई लेने लगी।
फागुन के मदहोश सी कशिश मे
मदमस्त सी बसंती हवा की छुअन
मे मेरा मन भी सतरंगी आसमां पर
उडने लगा।
माथे की बिंदिया चमक रही,तुम
नभ से उतरी परी कोई!
संगमरमर सी अद्भुत साक्षात्
स्वप्न सुंदरी।
इस लोक की नहीं हो
मेरे दिल की हसरतो को साक्षात्
करती मेरे मौन को भांप कर
चक्षुश्रवा कर दिल से दिल की
धड़कन की सरगम थिरकती
मेरी स्वप्न सुंदरी।