STORYMIRROR

Bhavna Thaker

Romance

4  

Bhavna Thaker

Romance

सामने वाली खिड़की में

सामने वाली खिड़की में

1 min
243

भोर की ऊर्जा मन में भरकर खिड़की जब मैं खोलूँ

एक व्योम प्यासा दिखता है मेरे सामने वाली खिड़की में

मन मोहक सा महबूब मुझको दिखता है।


प्यासी आँखें इत उत भटके अवगुण्ठन की आस लिए

देखूँ ना दिन भर जो उसको अश्कों का सागर उमटे

कण भर की नित एक झलक पर सौ बार मेरा दिल बिकता है


बयार के संग चुम्बन उसका खिड़की से उपहार सा बहता

आकर ठहरे गालों पर जब सुध बुध कंपित खोते

मुझ उर आँगन उपवन खिलता है।


बाँहें फैलाए मुझको पुकारे मिटे मुझ पर सब कुछ लुटाए

पथ पर दिन रैन बिताए पागल नज़रों से मुझको

ढूँढे एक आशिक मुझ पर रिझता है।


अदा उसकी बेमिसाल सी इश्क जताते उठती है

छल्ला बनाते होंठों घुमाते साँस मेरी ओर फेंकता है

मोहब्बत की अठखेलियों का सुंदर सा वो नुक्ता है



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Romance