सामने वाली खिड़की में
सामने वाली खिड़की में
भोर की ऊर्जा मन में भरकर खिड़की जब मैं खोलूँ
एक व्योम प्यासा दिखता है मेरे सामने वाली खिड़की में
मन मोहक सा महबूब मुझको दिखता है।
प्यासी आँखें इत उत भटके अवगुण्ठन की आस लिए
देखूँ ना दिन भर जो उसको अश्कों का सागर उमटे
कण भर की नित एक झलक पर सौ बार मेरा दिल बिकता है
बयार के संग चुम्बन उसका खिड़की से उपहार सा बहता
आकर ठहरे गालों पर जब सुध बुध कंपित खोते
मुझ उर आँगन उपवन खिलता है।
बाँहें फैलाए मुझको पुकारे मिटे मुझ पर सब कुछ लुटाए
पथ पर दिन रैन बिताए पागल नज़रों से मुझको
ढूँढे एक आशिक मुझ पर रिझता है।
अदा उसकी बेमिसाल सी इश्क जताते उठती है
छल्ला बनाते होंठों घुमाते साँस मेरी ओर फेंकता है
मोहब्बत की अठखेलियों का सुंदर सा वो नुक्ता है

