सेन्ज़ना
सेन्ज़ना
कल तलक़ जो बात नहीं थी
आज रात वो याद रही थी।
आहट में हर सन्नाटे की
उसकी ही आवाज़ रही थी।
यूँ तो मैं था तन्हा तन्हा
तड़प रहा था हर एक लम्हा
फिर भी इन गहरी रातों में
दुनिया मेरी आबाद रही थी।
आज रात वो याद रही थी
पलक झपकते ख़्वाबों में
वो रिमझिम करती आई थी
राहों में नज़र बिछाकर हमने
अपनी बाहें फैलाईं थी
वो गले लगी तो रोई थी
शायद यादों में खोई थी
यही कहानी थी अन्जानी
कैसी अंतिम मुलाक़ात रही थी।
कैसे थे जिन्दा सेनो~ज़ाना
कैसी दोनों की हयात रही थी
आहट में हर सन्नाटे की
बस इतनी सी आवाज़ रही थी
आज रात वो याद रही थी।

