खुद को कैसे समझाऊँ मैं
खुद को कैसे समझाऊँ मैं
दूसरों को तो समझा दिया
खुद को कैसे समझाऊँ मैं
तुझे प्यार नहीं मुझसे
ये कैसे मान जाऊँ मैं
तुम तो चुपचाप चली गई
कदम पीछे कैसे हटाऊँ मैं
वादा था साथ चलेंगे दोनों सदा
तुझे कैसे याद दिलाऊँ मैं
ज़माने की चार बातों के लिए
जज़्बातों का दीया क्यों बुझाऊँ मैं
तुमने तो आँसुओं को रोक लिया
अपनी सिसकियाँ कैसे छुपाऊँ मैं
पतझड़ भी बाहर से लगते थे
अब सावन रो-रो बिताऊँ मैं
तेरी आँखों के काजल को
कैसे धुलता हुआ देख पाऊँ मैं
जागते हुए की बात ही छोड़
नींदों मे भी तुझे ना भूल पाऊँ मैं
तेरे ज़ख्मी हुए इरादों पर
आ मरहम ज़रा लगाऊँ मैं
एक इशारे पर तेरे
ज़िंदा सा होने लग जाऊँ मैं
क्यों चुप है तू मुझे ये तो बता
तेरी खामोशी सह ना पाऊँ मैं
सोच ना कुछ बस कदम तो बढ़ा
हमराही बन साथ निभाऊँ मैं
बस तेरी एक हाँ सुनने के लिए
मंदिर मस्जिद रोज़ जाऊँ मैं
नाराज़ नहीं तू पता है मुझे
फिर भी कैसे तुझे मनाऊँ मैं
वो मुस्कुराता हुआ चेहरा तेरा फिर
फिर से देखना चाहूँ मैं!

