शायद कुछ गलत कर रहा हूँ
शायद कुछ गलत कर रहा हूँ
पता नहीं, आज कल मैं क्या कर रहा हूँ
सब सही तो नहीं, शायद कुछ गलत कर रहा हूँ
लेटने से अगर नींद आती, तो फिर
रात भर करवटें, क्यों बदल रहा हूँ
आँखें मूँद कर करता हूँ, सोने की कोशिश
पलकें उठाए, क्यों जग रहा हूँ
खुले आसमान में देखने की है चाह, चाँद को
फिर खिड़की के परदे क्यों लगा रहा हूँ
पता नहीं, आज कल मैं क्या कर रहा हूँ
सब सही तो नहीं, शायद कुछ गलत कर रहा हूँ
मिठास कहीं खोने लगी है, शब्दों में मेरे
कड़वे सच, जो बोले जा रहा हूँ
दिल लगाने की बात तो छोड़ो जनाब
हाथ मिलाने से भी डरने लगा हूँ
कटार सी चलती है बोलियाँ, हमदर्दों की
अपना सीना, छलनी करवाए जा रहा हूँ
पता नहीं, आज कल मैं क्या कर रहा हूँ
सब सही तो नहीं, शायद कुछ गलत कर रहा हूँ
चाहते है वो, बात मनवाना अपनी
अपने कान, बंद किए जा रहा हूँ
फिक्र, मुझे भी है सबकी
ये बात, मुश्किल से समझा पा रहा हूँ
कहीं, बढ़ने ना लगे दूरियाँ
भला बुरा सब सुने जा रहा हूँ
पता नहीं, आज कल मैं क्या कर रहा हूँ
सब सही तो नहीं, शायद कुछ गलत कर रहा हूँ
दिख नहीं रही है, करीब मंजिल
फिर भी, धीरे - धीरे कदम बढ़ाये जा रहा हूँ
मांग रहे है हिसाब चंद पैसों का वो
जिनके लिए वे - हिसाब खर्च किए जा रहा हूँ
अब तो आँसू भी सूख गए बह - बह कर
लहू को ही पानी किये जा रहा हूँ
पता नहीं, आज कल मैं क्या कर रहा हूँ
सब सही तो नहीं, शायद कुछ गलत कर रहा हूँ
क्या करूॅंगा, अरज कर खुशी
गमों मे, दिन - रात जीये जा रहा हूँ
हसरतें सब, होती नहीं पूरी
खुद को, समझाए जा रहा हूँ
जीते जी, तो मिला नहीं चैन
सुकून से मौत से मिलने जा रहा हूँ
पता नहीं, आज कल मैं क्या कर रहा हूँ
सब सही तो नहीं, शायद कुछ गलत कर रहा हूँ
