STORYMIRROR

Surjeet Kumar

Abstract Romance Fantasy

4  

Surjeet Kumar

Abstract Romance Fantasy

सिर्फ़ यादें थी

सिर्फ़ यादें थी

1 min
361

वो आयी थी कल मिलने को

पलकें झुकायी थी इशारा करने को

होंठो में दबा कर अल्फ़ाज़ कुछ

धीमे से बोली थी चुप रहने को



शब्दों में मिठास थी रस घोलने को

लहज़े में अंदाज़ था ध्यान खीचने को

मुस्कुराहट से सजे चेहरे ने उनके

रोक लिया था हमें नज़र भर देखने को



निगाहें मिली उनसे चार होने को

सांसे थम गई थी वक्त रोकने को

धड़क रहा था कमबख्त दिल

धड़कने उनकी सुनने को



चोड़ियाँ खनकाई थी शरारत करने को

बाली चमकाई थी ध्यान हटाने को

ज़ेवरों की चमक फीकी लगी हमें

जब शरमा के मुड़ी थी वो पीछे हटने को



सूरज सिर पर था चमकने को

मौसम में गर्मी थी पिघलाने को

साथ में जिस पल बैठी थी वो

जुल्फों की छांव थी ठंडक देने को



फिज़ा में खुशबू थी मदहोश करने को

झरने तैयार थे संगीत सुनाने को

सोचा था इज़हार करेंगे आज मगर

उन्हे जल्दी थी घर जाने को



बस थोड़ी सी दूरी थी मिटाने को

कुछ मज़बूरी थी ना बताने को

कदम बढ़ा रहे थे दोनों मगर

अब सिर्फ यादें थीं पलकें भिगोने को।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract