सिर्फ़ यादें थी
सिर्फ़ यादें थी
वो आयी थी कल मिलने को
पलकें झुकायी थी इशारा करने को
होंठो में दबा कर अल्फ़ाज़ कुछ
धीमे से बोली थी चुप रहने को
शब्दों में मिठास थी रस घोलने को
लहज़े में अंदाज़ था ध्यान खीचने को
मुस्कुराहट से सजे चेहरे ने उनके
रोक लिया था हमें नज़र भर देखने को
निगाहें मिली उनसे चार होने को
सांसे थम गई थी वक्त रोकने को
धड़क रहा था कमबख्त दिल
धड़कने उनकी सुनने को
चोड़ियाँ खनकाई थी शरारत करने को
बाली चमकाई थी ध्यान हटाने को
ज़ेवरों की चमक फीकी लगी हमें
जब शरमा के मुड़ी थी वो पीछे हटने को
सूरज सिर पर था चमकने को
मौसम में गर्मी थी पिघलाने को
साथ में जिस पल बैठी थी वो
जुल्फों की छांव थी ठंडक देने को
फिज़ा में खुशबू थी मदहोश करने को
झरने तैयार थे संगीत सुनाने को
सोचा था इज़हार करेंगे आज मगर
उन्हे जल्दी थी घर जाने को
बस थोड़ी सी दूरी थी मिटाने को
कुछ मज़बूरी थी ना बताने को
कदम बढ़ा रहे थे दोनों मगर
अब सिर्फ यादें थीं पलकें भिगोने को।

