भूल गया
भूल गया
आयना सबको दिखाते -दिखाते अपना चेहरा भूल गया
धूल उड़ी जो थोड़ी सी मुझ पर उंगलियाँ उठाना भूल गया
चार किताबें पढ़ते -पढ़ते लोगों को पढ़ना भूल गया
कोरे पड़े हुए पन्नों को रंगो से सजाना भूल गया
सबक जिंदगी का सीखते -सीखते ज़ायका लेना भूल गया
बच -बच कर चला खतरों से जोखिम उठाना भूल गया
अंधेरों में उजाला करते-करते दिन की रोशनी भूल गया
जुगनुओं की तरह दमकते - दमकते दिवाकर सा चमकना भूल गया
सबकी बातें सुनते -सुनते कुछ अपनी कहना भूल गया
दिल कि दिल में रखी हमेशा दिल की करना भूल गया
मुखौटों पर मुखौटा लगाते- लगाते बहरूपिया अपनी असलियत भूल गया
नासमझ हर वो शख्स है जो सच की ताकत भूल गया
बनावटी हंसी हँसते हँसते मुस्कुराहट की आहट भूल गया
कई ज़ख़्म लगे थे भीतर मुझ को मरहम लगाना भूल गया
मंज़िल की तलाश में चलते -चलते पैरो के छाले भूल गया
इस दौड़ती हुई सी जिंदगी में आराम करना भूल गया
औरों की नकल करते- करते मुसाफिर अपनी चाल भूल गया
शहरों की चमकती हुई रातों में गांव का सूरज उगना भूल गया
ज़माने में सबसे मिलते -मिलते खुद से मिलना भूल गया
भूल हुई बड़ी भारी मुझसे जो खुद को समझना भूल गया
