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Surjeet Kumar

Tragedy Classics Inspirational

4  

Surjeet Kumar

Tragedy Classics Inspirational

क्या बताऐं आपको अब

क्या बताऐं आपको अब

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क्या बताऐं आपको अब 

पहले सा यहाँ कुछ रहा नहीं

आँख दिखाने से सन्नाटा छा जाता था

अब डांटने पर भी कोई सुनता ही नहीं

आना -जाना रहता था मेहमानों का

अब किसी के पास समय ही नहीं

कहानियाँ सुनते थे बुजुर्गों से

वो समा अब बंधता ही नहीं

चित्रकारियाँ करते थे आसमानों में

वो कागज अब मिलता ही नहीं

क्या बताऐं आपको अब

पहले सा यहाँ कुछ रहा नहीं


फूस के घरों में खुशियाँ झलकती थी

महलों में सुकून मिलता ही नहीं

एक सेज पर सपनों में खो जाते थे

गद्दों पर भी नींद आती ही नहीं

अनपढ़ थे तो साथ में रहते थे सब

पढ़ लिख कर संग आये ही नहीं

औरों के लिए लड़ लिया करते थे कभी

अब अपनो से नाता निभा पाते ही नहीं

क्या बताऐं आपको अब

पहले सा यहाँ कुछ रहा नहीं



जिस रिमझिम में भीग कर खेलते थे

वो बरसात अब होती ही नहीं

जिस अलाव को तापा करते थे

वो आग अब जलती ही नहीं

आम तोड़ कर खाते थे पेड़ो से

वो बाग अब मिलते ही नहीं

मिट्टी से भी खुशबू आती थी कभी

अब पुष्प सुगन्ध देता ही नहीं

क्या बताऐं आपको अब

पहले सा यहाँ कुछ रहा नहीं



हस लेते थे ज़रा सी बातों पर

लतीफ़ों पर कोई मुस्कुराता ही नहीं

आँख भर आती थी सिर्फ सुन कर गम

कत्ल देख कोई पसीजता ही नहीं

आदर्शो के लिए जाने दी जाती थी

वो स्वाभिमान अब दिखता ही नही

सियाह सी स्याही है लोगो की ज़ुबां में एक

जिसकी कालिमा से कोई बचा ही नहीं

क्या बताऐं आपको अब

पहले सा यहाँ कुछ रहा नहीं।


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