STORYMIRROR

Harminder Kaur

Fantasy

4.5  

Harminder Kaur

Fantasy

मिलती रहूं ...

मिलती रहूं ...

1 min
393


यादों के पुलिंदे मानो

छाती से चिपक गए

और

वक्त की आंधी जिन्हें कभी

उच्छेदित ना कर पाई

अब.....

अब तो लगता है जैसे

सब्र भी कहीं खामोशी संग

एक राह पर चलते-चलते

तम से गहन कर आया है

कि

ताउम्र यूँ ही अमूक बीते पल बनकर

हिज़्र में सोई रहूं

किसी.....किसी करिश्माई रौशनी से

बहुत-बहुत दूर कहीं गहराई में

तुझ संग लिपटी रहूं

बेशक

गुजरा वक्त लौटकर नहीं आएगा

फिर भी 

उन एहसासों से यदा-कदा मिलती रहूं

बस मिलती रहूं ! 



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Fantasy