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Dhan Pati Singh Kushwaha

Inspirational

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Dhan Pati Singh Kushwaha

Inspirational

प्रकृति का कोप

प्रकृति का कोप

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हुई कुपित है आज प्रकृति क्यों,

त्राहिमाम कर रहा जग में इन्सान?

दण्डित कर अविवेकपूर्ण निर्णय हित,

स्वस्थ हुई है ये कहती है इसकी मुस्कान।


जनसंख्या के विस्फोट संग ,

था चाहा जब मानव ने आराम,

अदम्य प्रलोभन के बश होकर ,

 किए थे अनेक अवांछित काम।


सीमा लांघ असंतुलन करता ,

तब प्रकृति करती है काम,

संतुलन तब खुद हो जाता है ,

क्रम चलता रहता है अविराम।


कारखानों ने वसुधा का दम था घोंटा,

जहां बने थे सुख सुविधा के सामान।

जिनसे मानव को आलसी बनाकर,

 किया मानव संरक्षा शक्ति को हलकान।


खुद की विजय हरा दूजे को,

जब स्वार्थ भावना हो जाती है बलवान,

तब मानव को समता का पाठ पढ़ाकर, 

खुद जग में संतुलन बनाते हैं भगवान।


संरक्षण करें प्रकृति का शरण में रहकर, 

संतुलन बना रहना बड़ा जरूरी है,

असंतुलन होने पर संतुलित करे प्रकृति,

 तब लगता अति अप्रिय पर मजबूरी है।


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