मां
मां
जिंदगी नाम की जो एक किताब है
उस किताब की जिल्द तो मां ही है
जिस किताब की जिल्द उतर जाती है
उस किताब के पन्नें जल्द बिखर जाते हैं
इसलिए किताब की जिल्द को संभाल कर
रखने की जिम्मेदारी भी तो हम सब की है
ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार जिल्द अपने
पन्नों को रखतीं हैं बाहरी परिवेश से संभाल कर
जिल्द बिना इस जिंदगी नामक किताब
की कल्पना भी जैसे बेईमानी लगती हैं
मोह ममता के तानों बानों से बुनी ये जिल्द
अपने पन्नों को खुद में जैसे समेटे रखतीं हैं
क्यों कि मां नामक ये जिल्द अपने पन्नों
को कभी बिखरते हुए नहीं देख सकती है !