महात्मा बुद्ध
महात्मा बुद्ध
समयानुकूल न परिवर्तित हों तो ,
अवांछित परंपराएं उपजाती युद्ध।
कुरीति मिटाने नवयुग लाने हित ,
अवतरित होते हैं वसुधा पर बुद्ध।
ईसा से 563 वर्ष पहले नेपाल तराई के लुम्बिनी ग्राम में ,
बुद्ध जन्मे सिद्धार्थ नाम से क्षत्रिय वंश के शाक्य नाम में।
जननी महामाया-जनक राजा शुद्धोधन के अपने घर,
पुत्र रूप में आए कपिलवस्तु राज्य में इस भूमंडल पर।
महापरिनिर्वाण-प्राप्ति ज्ञान और इस ,
पावन-पुण्य धरा पर अवतरण प्रभु का।
पूर्णिमा वैशाख माह के एक ही दिन को ,
ये तो है एक चमत्कार ही है कुदरत का।
जन्म के सातवें दिन मां जब स्वर्ग सिधारी,
पालन-पोषण मौसी गौतमी के करों से पाया।
पाणिग्रहण यशोधरा का सोलह की वय में,
पितृऋण मुक्ति हेतु पुत्र रूप में राहुल भी आया।
अति द्रवित हुआ मन देखा जो मानव के अनेक दुखों को,
जनक के लाख प्रयासों पर भी मन घर रहने को नहीं करा।
महाभि-निष्क्रमण उन्तीस वर्ष की उम्र की वह घटना है,
जब छोड़ा सोता सुत राहुल -छोड़ी सोती पत्नी यशोधरा।
छह वर्षों की कठिन तप के बाद प्रभु को ,
वैशाख पूर्णिमा को पीपल के वृक्ष के नीचे था बोध हुआ।
और अति पावन बोधगया था स्थान बोध का,
सारनाथ में गौतम बुद्ध रूप में था पहला उपदेश हुआ।
दु:ख-अविद्या-श्रद्धा और निवारण ,
यही तो चार आर्य सत्य हैं मानव जीवन के।
अष्टांग मार्ग है निर्वाण प्राप्ति का,
मध्यम मार्ग है सफल जीवन के तन- मन के।
प्रेम-दया -सहयोग भाव हर पंथ सिखाता,
देश-काल-परिस्थिति के वश होता है परिवर्तन।
निज विवेकानुसार फैसले होते हैं लेने,
अष्टांग योग संग मध्यम मार्ग सुधारेगा तन-मन।