मेरी जगह
मेरी जगह
गर मेरी जगह तुम होते तो समझ पाते
जब दिल जलता है, जब पलकें भीगती है
जब ग़म की आह निकलती है
जब इक माँ अपनी बेटी को रोते देखती है
जब गलती ना होने पर भी गिड़गिड़ाती है
जब चुप रहकर सामने वाले कि कड़वी बातें सुनती है
जब कुछ मजबूरी ना होते हुए भी रिश्ता निभाती है
जब बार बार धक्का देने पर भी वापस आती है
ये सब उसकी कमजोरी नहीं बल्कि प्यार होता है
ये सब सहने की आदत नहीं पर संस्कार होता है।
