किसी से नहीं बैर मुझको
किसी से नहीं बैर मुझको
बचपन में सुख ही सुख था
क्यूंकि दिल में किसी से बैर ना था
बड़े होने पर भी अपने दिल में
शुभ भावना रखने की कोशिश की अहम,
क्रोध,जलन और तुलना का
कोई व्यवहार नहीं शुभ भावना से
तात्पर्य बुरे से बुराई नहीं बल्कि
उस बुरे के अच्छे होने की दुआ है
करनी अगर बुरे के बदले में सोचेंगे
बुरा तो नकारात्मक ऊर्जा विकसित होगी
अगर बुरे के बदले में अच्छा सोचेंगे तो
सकारात्मक ऊर्जा हमें सकारात्मक बना देगी
इसलिए रखना है, किसी से नहीं बैर मुझको
कभी कबीर जी ने भी कहा कबीरा खड़ा बाज़ार में,
मांगे सबकी खैर ना काहू से दोस्ती, ना काहू से बैर।