रात ये कह कर छेड़ती है
रात ये कह कर छेड़ती है
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आँख खुली और देखी घड़ी
लो शुरू हो गई कवायद
वक़्त के साथ रेस लगाने की
कभी वक़्त आगे और कभी हम
शाम के आते आते शरीर दे देता है
जवाब
बस और अपने बस में नहीं
दिल कहता है जाने दो ना सूरज को
जो जाता है
वक़्त का भी छोड़ो पीछा
देखो जरा कैसी मंद बयार चल रही
चाँद भी आसमान पर धीरे धीरे
सरक रहा
रात भी ये कह कर छेड़ती है
तब छोड़ो भागना आओ साथ मेरे
देखो ख़्वाब उन सुहाने दिनों के
जो जिंदगी में तुमने बिताए