STORYMIRROR

Neelam Sharma

Abstract

4  

Neelam Sharma

Abstract

सीढ़ी चढ़ छू लूँगा बादल।

सीढ़ी चढ़ छू लूँगा बादल।

1 min
776

अरमानों की सीढ़ी पर चढ़, माँ !

मुझको सुन आसमाँ छूना है।

जितना ऊँचा नीलम अंबर, माँ

उतना स्व आत्मविश्वास दूना है।


जितने भी धवल उज्ज्वल बादल,

छू लूँगा ओढ़ ममतामयी आँचल।

कभी श्यामल कभी धवल से बादल,

खिलते श्वेत पद्म,कमल से बादल।


माँ देखो इनका आकार,

करते ये सपना साकार।

कभी बैल से, कभी शैल से

कभी रूप ये पेड़ का धरते,

कभी भेड़ बन नभ में विचरते।


कभी शेर बनकर दहाड़ते,

कभी झरना ये कभी पहाड़ से।

कभी बन चोर सिपाही खेलते,

कभी मन मोर बनकर नाचते।


बालक मन विभोर यह करते,

अंधेरे मन में भोर यह करते।

माँ होते मन मतवाले बादल,

करुण हृदय रखवाले बादल।


छा जाते जब नीलगगन पर,

दुख पथिक का संभाले बादल।

हलधर स्वप्न हैं पाले बादल,

बरखा रिमझिम डालें बादल।


धरा वसुधा की प्यास बुझाते,

खुद में दुख सभी, समालें बादल।

गरज बजाते ये रणभेरी,

रोशन करते अमा अंधेरी।


कभी कभी कर देते देरी,

उल्लसित बूंदें खूब बिखेरी।

नभ पर जब छा जाते बादल

देखो आसमाँ पर जाते।


विरहन के ये आए बुलाये

हर प्राणी को सुख ये देते,

सबकी गर्मी दूर भगाये

खेतों में हरियाली फैलाये।


जीव जंतु सब उर हुलसाये,

वन उपवन तरु विटप मंजरी,

सबपर शीतल जल बरसाये।

बादल चंचल बदले पल-पल,

निर्मल निश्छल उज्जवल दलबल।


घुमड़ घुमड़ कर ये हैं गहराये,

बच्चे छपाक छयी,उधम मचायें।

होते कितने प्यारे बादल,

सुंदर सहज और न्यारे बादल।


नीलम नीलवर्ण से बादल,

प्रेयसी के हलकारे बादल।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract