बचपन से बुढ़ापे का सफर
बचपन से बुढ़ापे का सफर
पीढ़ी दर पीढ़ी
जीवन की सीढ़ी
संस्कार सिखाती
जीने का ढंग बताती
सेवा भाव जगाती।
माँ गोदी में खिलाती
बचपन, किशोरावस्था में
दोस्त खूब बनाते हैं
हँस हँस कर बातें करते।
बात बात पर खिलखिलाते हैं
किशोरावस्था के बाद
जब युवावस्था आती
जीवन में वह
परिवर्तन है लाती।
युवा जब पढ़ता है
निश्चित ही आगे बढ़ता है
नव तकनीक का प्रयोग करता है
जीवन के ख़ालीपन को भरता है।
जब कभी वह पथ से भटक जाता है
अंधकार ही उसे नज़र आता है
अंतिम सीढ़ी वृद्धावस्था
जब आती है।
चेहरे पर झुर्रियां पड़ जाती हैं
बचपन से बुढ़ापे का सफर
ऐसे ही कटता जाता है
दीये का तेल
ऐसे ही घटता जाता है।
कुछ ख्वाहिशें
पूरी हो जाती है
तो कुछ ख्वाहिशें
अधूरी ही रह जाती हैं।
