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हरीश सेठी 'झिलमिल'

Abstract

5.0  

हरीश सेठी 'झिलमिल'

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स्वर्ग

स्वर्ग

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स्वर्ग

है तो इक

छोटा सा शब्द

पर 

होता है अहसास।


जैसे हो

हरा भरा संसार

फूल, फल, पत्ते

बाग-बगीचे

खिले चेहरे।


खुशियाँ बाँटते

अनन्त

गुणों का भंडार

धर्मग्रंथ, सत्संग,

बड़े बुजुर्ग

अकसर समझाते हैं,


महत्त्व 

स्वर्ग का वे बताते हैं

मन, कर्म, वचन

शुद्ध रखो

मत दुखाओ

दिल किसी का।


निभाओ

शिद्दत से

अपना किरदार

तभी मिल पाएगा

आपको

स्वर्ग का आधार।


पर है विडंबना 

कि जो चला गया

वो वापिस लौट

कर नहीं आया

आज तक।


स्वर्ग के बारे में

प्रत्यक्ष

किसी ने भी

नहीं बताया

यूँ तो

कश्मीर को

धरती पर

स्वर्ग बताया जाता है।


पर स्वर्ग नरक का

असली भेद

समझ नहीं आता है

जन्म मरण

से छुटकारा

जब खुलता,


दसवाँ द्वारा

नाम शब्द है

आधारा

सबके अपने-अपने

तर्क हैं।


अपनी-अपनी आशा

शायद कभी 

मिल जाए

स्वर्ग की

असली परिभाषा।


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