देश हमारा
देश हमारा
रख दिया इतना वजन इस धरती पर
कि धरती की छाती ही फटने लगी
काट कर कर दिया छोटा इतना पर्वतो को
की वो अब है दरकने लगे।
बहा दिया नदियों मे इतना गन्द
कि वो नाले से अब लगने लगे।
काट दिया जंगलो को इस कद्र
जानवर शहरों मे अब घुसने लगे।
उजाड़ कर वन उपवन सभी
धरती का कलेजा छलनी कर डाला।
तोड़ कर पुल और सडक
सब सौंदर्य विहीन कर डाला।
उखाड़ डाली रेल की पटारियां
फुटपाथों को गुटखे से रंग डाला।
घर को अपने कर लिया साफ
सड़कों को गंदा कर डाला।
इतना सब करने के बाद भी
देश पर तुम ऊँगली उठाते हो
देना कुछ चाहते नही हो देश को
सब कुछ देश से चाहते हो।
देश के मान्य व्यक्तियों को गाली देना
अपनी शान तुम समझते हो।
जवान और किसान को नीचा दिखा
खुद को बड़ा तुम समझते हो।
फिर कैसे तुम खुद को सच्चा भारतीय
कहने का दम्भ भरते हो।
हो भारतीय तो भारत को पहचानो
अधिकार के साथ होते कर्तव्य ये जानो।
देश से जब तुम इतना कुछ पाते हो
थोड़ा खुद को सभ्य बनाना सीखो।
माना देश को चलाना है नेताओं की जिम्मेदारी
पर इसमे होनी चाहिए तुम्हारी भी भागीदारी।
कुछ बना नही सकते तो उजाड़ने का तुम्हे हक नहीं
पूछो अपने अंतर्मन से क्या गलत है क्या सही।
जिस दिन देश का हर शख्स देश को अपना समझेगा
उसी दिन ये देश हमारा विश्व पटल पर चमकेगा।
